Friday 3 April 2015

सफ़ेद दाग और ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर


सफ़ेद दाग और ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर


क्या है ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर ?
आमतौर पर प्रतिरोधकता (इम्यूनिटी) हमारे शरीर की बाहरी हानिकारक कोशिकाओं से रक्षा करती है. ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) उल्टा काम करने लगती है.  इस स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) स्वस्थ कोशिकाओं को ही बाहर की कोशिकाएं समझकर नष्ट करना प्रारंभ कर देती है. सामान्य शरीर में श्वेत रक्त कणिकाएँ  बाहर की हानिकारक कोशिअकाओं जैसे कि-बायरस, बैक्टीरिया आदि को नष्ट करने के लिए एंटीबाडी उत्पन्न करती हैं जोकि हानिकारक जीवाणुओं, विषाणुयों और कीटाणुओं को नष्ट करता है.

ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर कई प्रकार के रोगों का कारण है जैसेकि :-

सफ़ेद दाग
क्या है सफेद दाग? -एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है। सफेद दाग के मामले में खराब इम्यूनिटी की वजह से शरीर में स्किन का रंग बनाने वाली कोशिकाएं मेलानोसाइट (melanocyte) मरने लगती हैं। इससे शरीर में जगह-जगह उजले धब्बे बन जाते हैं। -सफेद दाग को वीटिलिगो, ल्यूकोडर्मा, फुलेरी और श्वेत पात नाम से भी जाना जाता है।

उपचार /इलाज -सफेद दाग न फैले इसके लिए आमतौर पर तीन दवाएं दी जाती हैं: मिनी स्टेरॉयड पल्स(mini steroid pulse), लिवामिसोल (levamisole), एजोरान (Azoran)। मिनी स्टेरॉयड पल्स से हालांकि कई बार वजन बढ़ जाता है। -स्किन का रंग वापस लाने के लिए बाबची सीड्स (babchi seeds-8 methody psoralence), एपिफरमल फाइब्रोकास्ट ग्रोथ फैक्टर (epiphermal fibroblast growth factor), कैल्सिन्युरिन इन्हिबिटर ऑइंटमेंट (calcineurin inhibitor ointment), वीक कॉर्टिको स्टेरॉयड क्रीम (weak cortico steroid cream), ऑर्गन प्लैसेंटल एक्सट्रैक्ट क्रीम (organ placental extract cream)। -फोटो थेरपी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इसके तहत सूर्य की किरणों UVA और नैरोबैंड UVB का इस्तेमाल स्किन का रंग फिर से सामान्य बनाने के लिए किया जाता है। इस थेरपी का साइड इफेक्ट यह है कि इसे करते हुए सावधानी न बरती जाए तो स्किन काली पड़ सकती है। -यूं यह बीमारी 1000-1500 रुपए महीने के खर्च के हिसाब से ठीक की जा सकती है।  


गलतफहमियां और तथ्य -यह कैंसरस नहीं है और न ही इसमें जान का कोई खतरा है। -सफेद दाग का कोढ़ (लेप्रसी) से भी कोई लेना-देना नहीं है। -कुछ लोग इसे सोराइसिस(Psoraisis) भी समझ लेते हैं, जिसमें स्किन पर धब्बे तो बनते हैं, लेकिन वे उजले नहीं, लाल धब्बे होते हैं। इन धब्बों पर सफेद रंग के बुरादे के रूप में जैसे डैंड्रफ झड़ता है, वैसे ही निशान बन जाते हैं। इसलिए लोगों को लगता है कि उन्हें सफेद दाग हो गया है। सोराइसिस और सफेद दाग अलग हैं। -कुछ लोगों का शरीर पूरा का पूरा उजला होता है। उसकी वजह यह होती है कि उनके शरीर में रंग बनाने वाले कण (मेलानोसाइट) जन्म से ही पूरी तरह नहीं पाए जाते। ऐसे लोगों को एल्बीनो और उनकी बीमारी को एल्बीनिज्म कहा जाता है। यह बीमारी वंशानुगत और लाइलाज है।

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